लेखनी कहानी -03-Jul-2023# तुम्हें आना ही था (भाग:-26)#कहानीकार प्रतियोगिता के लिए
गतांक से आगे:-
देवदत्त धीरे धीरे अपना सारा गुस्सा उन पत्थरों पर उतारने लगा । राजकुमारी कजरी एक पेड़ के नीचे बैठ गयी । मुद्रा तो क्या बननी थी उससे थुलथुला शरीर सही ढंग से बैठा भी नहीं जा रहा था उससे। देवदत्त की छैनी हथौड़ी लगातार चल रही थी और जब मूर्ति बनकर तैयार हुई तो वह उसे देखकर जोर जोर से हंसने लगा।
तभी राजकुमारी पर्दे की ओट हटाकर उस के पास आई तो हैरान रह गयी। क्योंकि देवदत्त ने एक भैंस के मुख की जगह राजकुमारी कजरी का मुख लगा दिया था बाकि शरीर भैंस का था। जिंस देखकर राजकुमारी कजरी आग बबूला हो गई ।उसने देवदत्त को झिंझोड़ते हुए कहा,
"ये क्या बनाया है । क्या मैं ऐसी दिखती हूं?*
"बिल्कुल ,,ऐसी ही दिखती हैं। आप राजा की बेटी है तो इसका मतलब ये नहीं कि मैं आप की मूर्ति एक अप्सरा जैसी बना दूं ।आप भद्दी दिखती है तो इसमें मेरा क्या कसूर ।आप अव्वल दर्जे की बदसूरत औरत है ,गले पड़ी मुसीबत है ।और…..और भी कुछ सुनना चाहेंगी।"
देवदत्त को पता था कि राजकुमारी कजरी ने ही राजा वीरभान से उसके और चंद्रिका के विषय में बताया था। क्योंकि जब भी वह देवदत्त से मिलने आती थी हमेशा चंद्रिका की बुराई ही करती थी ।कभी कहती हमारे टुकड़ों पर पलने वाली नौकरानी है , मैं तो बचपन में इसे बहुत मारती और दुत्कारते थी।पता नहीं किस की औलाद है।आदि आदि ।जब वह चंद्रिका की बुराई देवदत्त के आगे करती थी तो देवदत्त को बहुत गुस्सा आता था लेकिन वह कजरी का कुछ बिगाड़ नहीं सकता था ।आज देवदत्त ने मन में ठान ही लिया था कि चाहे उसे राज शिल्पी पर से हटा ही क्यों ना दिया जाए पर वह आज अपनी सारी भड़ास निकाल कर ही दम लेगा और वही काम उसने किया भी। क्योंकि चंद्रिका को देखें बगैर वो जिंदा नहीं रह सकता था ।उसे एक उपाय बार बार समझ आ रहा था कि अगर हमें यहां मिलने नहीं दिया गया तो हम दोनों ये राज्य छोड़कर भाग जाएंगे। लेकिन हम एक दूसरे से जुदा नहीं रह सकते।
इधर चंद्रिका बहुत अच्छी चित्रकारी करना जानती थी ।उसने देवदत्त के विरह में एक तस्वीर बनाई ।जिसमें दोनों लाल हवेली के आगे खड़े हैं ।उनकी आंखों में भविष्य के सुनहरे सपने जगमग कर रहे हैं।एक नूर सा टपक रहा था उस तस्वीर में । चंद्रिका ने मन ही मन सोचा कि ये तस्वीर मैं अपने देव को दूंगी वो मुझे देखकर ही अपना सृजन करता है । अब वो मुझे नहीं देख पा रहा है तो उसका सृजन रुका हुआ है। मैं उसको ये तस्वीर दे दूंगी तो उसे मेरी याद कम दुःखी करेंगी। वह मन ही मन देवदत्त से मिलने का उपाय खोज रही थी।अभी नया-नया मामला था तो सभी की नज़र दोनों पर ही टिकी थी कि कभी दोनों चोरी से मिलते ना हो ।राजा वीरभान ने तो चंद्रिका की हवेली में एक पहरेदार ज्ञको भी बैठा दिया था ।अब वो दरबार में आती थी तो सख्त पहरे में आती थी। इसलिए दोनों का मिलना संभव था ही नहीं।उस गुप्त मार्ग से जाने के लिए मां ने मना कर दिया था।
चंद्रिका दिन-रात देवदत्त के विरह में घुलतीं जा रही थी।वह सारी सारी रात सुबकती रहती थी ।जब कनक बाई उसके कक्ष में उसे देखने आती तो चुपचाप अपने आंसू पौंछ लेती थी।कनक बाई भी मां थी उसकी, उसे अच्छे से पता था कि उसकी बेटी किस दर्द से गुजर रही है।पर उसका कोई जोर नहीं चलता था।
दोनों विरही अपने अपने प्राणों को बस सम्हाले बैठे थे कि कब पिया मिलन की आस हो और कब दिल को चैन आये।
चंद्रिका की हालत दिन पर दिन बिगड़ती जा रही थी वह मात्र हड्डियों का ढ़ांचा रह गयी थी ।जिस चंद्रिका के मुख की लालिमा से गुलाब और तेज से चांद भी शर्मा जाए आज वह मात्र सूखी लकड़ी बन कर रह गई थी।ना वह कुछ खाती थी ना पीती थी बस देव देव रटती रहती थी।
इधर देवदत्त भी सूखकर लकड़ी की तरह हो गया था ।उसे पता होता कि वह कुंदनपुर आये गा और दिल का रोग लगा बैठेगा तो वह कुंदनपुर आता ही नहीं। वह भी दिन रात चंद्रिका चंद्रिका करता रहता था।
एक दिन कनक बाई को चंद्रिका पर तरह आ गया और उसने अपनी बेटी को अपने पास बुलाया और बोली,
"बिटिया अगर ऐसे ही रहोगी तो एक दिन जिंदगी से हाथ धो बैठोगी।"
"अब तुम ही बताओ मां जब किसी के शरीर से कोई प्राण ही निकाल लेगा तो वो जीवित कैसे रह सकता है ?"
"बिटिया मैं तुम्हें एक उपाय बताती हूं । मुझे पता है तुम देवदत्त के बिना जिंदा नहीं रह सकती हो। तुम ऐसा करो में तुम्हें कुछ जमा-पूंजी दे दूंगी और तुम देवदत्त। को लेकर ये राज्य छोड़कर कहीं दूर जाकर अपनी गृहस्थी बसा लो।"
"मां तुम्हारा क्या होगा ? मेरे सिवाय तुम्हारा और कोई भी नहीं है ।नहीं मां मैं तुम को छोड़कर नहीं जा सकती ।फिर पीछे से राजा जी तुम को जीने नहीं देंगे वो तुम को सूली पर चढ़ा देंगे।"
"बिटिया तू मेरी चिंता मत कर ।आज से तीन दिन तक राज्य में नाग पंचमी के उपलक्ष्य में उत्सव होगा ।राजा वीरभान और सभी राज्य के लोग इस उत्सव में मग्न होंगे आज रात राजा वीरभान के कुछ जरूरी मेहमान आ रहे हैं दूसरे राज्य से । मुझे उसी गुप्त मार्ग से राजा जी ने बुलाया है उन मेहमानों को मेरी गाई ठुमरी ही पसंद है ।तुम भी तैयार हो जाओ ।पर एक दासी के रूप में चलना मेरे साथ और अपने देवदत्त से मिलकर आगे की भूमिका बना लेना कि आगे क्या करना है।"
"पर मां अगर सुमंत्र या राजकुमारी कजरी ने देख लिया तो।"
"बिटिया अब पर वर छोड़ो और तैयार हो जाओ। मर तो तुम ऐसे भी रही हो ।अगर कोई देख लेगा तो क्या कम से कम अपने प्यार से तो मिलकर मरोगी।"
यह कहकर कनक बाई रात के जलसे की तैयारी में लग गई।
कहानी अभी जारी है……………